भरत नाट्य शास्त्र गढवाली अनुवाद

नाट्य रसों का वर्ण (Colour of Raptures)
भरत नाट्य शास्त्र 


  • अथ वर्णा / रसुं बिगळयां -बिगळयां वर्ण
श्यामो भवति श्रृंगार: सितो हास्य: प्रकीर्तित: I
कपोत: करुणश्चैव रक्तो रौद्रः प्रकीर्तितः II (6 , 42 )
गौरो वीरस्तु विज्ञेय: कृष्णश्चैव भयानकः I
नीलवर्णस्तु बीभत्स: पीतश्चैवाद्भुत: स्मृतः II (6 , 49 )

श्रृंगार रस को वर्ण श्याम श्याम (नीलो ), हास्य रसौ वर्ण श्वेत /सुफेद हूंद। करूँ रसौ वर्ण कपोत (grey ) हूंद अर रौद्र रासौ वर्ण लाल हूंद। वीर रसौ वर्ण गौर (गुलाबी ) अर भयानक रसौ वर्ण काळो हूंद। बीभत्स रसौ वर्ण नीलो तथा अद्भुत रसौ वर्ण पीलो हूंद


  • श्रृंगार रस व्याख्या
s = आधी अ
तत्र शृंगारोनाम एवमेष आचारसिद्धोहृद्योज्ज्वल वेषात्मकत्वाच्छृंगारो रसः I
स च स्त्रीपुरुषहेतुक उत्तमयुवप्रकृति:। शतस्य द्वे अधिष्ठाने सम्भोगो विप्रलम्भ श्च।
तत्र सम्भोगस्तावत्
ऋतुमाल्यानुलेपनालङ्कारेष्टजनविषवरभवनोपभोगोपवनमनानुभवन श्रवणदर्शनक्रीड़ालीलादिभिर्विभावैरुत्पद्यते। । (6. 45 पैथरा गद्य ) .
विप्रलम्भकृत: श्रृंगार
वैशिकशास्त्रकारैश्च दशावस्थोsभिहितः I ताश्व सामन्यभिनये वक्ष्याम :।
औत्सुक्यचिंतासमुथ: सापेक्षभावो विप्रलम्भकृत: ।। (6 ,45 पैथरा गद्य )
श्रृंगार रस -
सिद्ध आचरणों युक्त , उज्ज्वल जिकुड़ेळी (हृदयात्मक ) , ललित वेषधारी
अनुवाद , व्यख्या सर्वाधिकार @ भीष्म कुकरेती मुम्बई हूणो कारण से ये तै श्रृंगार रस बुल्दन। यु रस श्रेष्ठ (उदात्त ) प्रवृति अर स्वरूप का दगड़ , उत्तम वय (आयु ) का स्त्री -पुरुष मध्य अनुराग से प्रकशित हूंद। ये म सम्भोग अर विपलंभ द्वी अधिष्ठान ( संस्थान , प्रतिष्ठापन ) माने गेन।
सम्भोग ऋतुओं क मानसिक प्रभाव से , माळाऊं क सुसेवन , अनुलेप , अलंकरुं प्रयोग अर अपण प्रिय जनुं क संबन्धुं म छ्वीं बत्थ , बिगरैल कूड़ुं उपयोग , सुखदायी पवनक स्पर्श करण, बग्वानुं म घुमण, भली -सुंदर बत्थ सुणण अर दिखण, खिलण -विनोद करण जन विभावों से सम्भोग श्रृंगार उतपन्न हूंद।
श्रृंगार रसक एक प्रकार विप्रलम्भ बि हूंद। वैशिक शास्त्र म यांक दस अवस्थाओं वृत्तांत दियुं च। यांक विषय म मि अग्वाड़ी चर्चा करलु। विप्रलम्भ संबंधी भाव उत्सुकता (क्या ह्वाल क्या नि ह्वाल मनोस्थिति ) अर चिंता से उतपन्न हूंदन बल।


  • अथ हास्य रसो नाम / अब हास्य रस मनोविज्ञान

विपरीतालङ्कारैर्विकृताचाराभिधानवेषैश्च I
विकृतैरर्थविशेषैर्हसतीति रसः स्मृतो हास्य:II भा ना शा 6. 49 )
हास्य रस -
विपरीत वेश भूषा से अफु तैं सज्जित करण से, उल्ट -सीधा आचरण से , उल्टी -सीढ़ी भाषा बुलण से , अर अनर्गल /निरर्थक अर्थ वळ बोल बुलण से उत्पन्न हौंस क कारण ज्वा हौंस उत्पन्न हूंद ,वो हास्य रस हूंद।

  • अथ करुणो नाम , अब करूण रस

इष्टवधदर्शनाद्वा विषयवचनस्य संश्रवाद्वापि।
एभिभविशेषै: करूणरसो नाम संभवति । । (6.62 )

अपण प्रियजनै ह्त्या दिखण से या अप्रिय वचन सुणण आदि का विशेष भावों से उत्पन्न हूण वळ रस करुण रस हूंद। . .

अथ रौद्र नाम / अब रौद्र रस नाम (मनोविज्ञान )

अथ रौद्र नाम
युद्ध प्रहारघातनाविकृतच्छेदनविदारऐश्चैव I
संग्रामसम्भ्रमाद्यैरेभि: संजायते रौद्र II (6,64)
जुद्ध म प्रहार , आघात , (धक्का मुक्की ) , चिन्न भिन्न करिक विकृत करण से , कटण , जुद्ध संबंधी कार्यकलापुं , भ्रामक हलचलुं से रौद्र रस उत्पति हूंद I






  • अथ वीरो नाम /वीर रस मनोविज्ञान
भरत नाट्य शास्त्र अध्याय - 6: रस व भाव समीक्षा
भरत नाट्य शास्त्र गढवाली अनुवाद 
अथ वीरो नाम
उत्साहादध्यवसायादविषादित्वादविस्मयान्मोहात् I
विविधादर्थविशेषाद्वीररसो नाम सम्भवति II (6 ,67 )
प्रसन्न्तापूर्वक उलार , निरंतर परिश्रम, विषाद , विस्मय , मोह -शून्यता ,सतर्कता अर इनि विशिष्ठ अर्थो द्वारा उलारमूलक वीर रास उतपन्न हूंद ।


  • अथ भयानको नाम , भय मनोविज्ञान
विकृतरवसत्वदर्शनसंग्रामरण्यशून्यग्रहगमनात I
गुरुनृपयोरपराधात्कृतकश्च भयानको ज्ञेय: II (6.69)
वकृत ध्वनिऊँ सुणन से भयंकर पशु अथवा भूत पिचास जन वस्तु /जीव देखिक, संग्राम , जुद्ध, बौण, इखुली घौरम जाण से , गुरु या रज्जा का प्रति अपराध हूण जन कारणो से भयानक रस उत्पन्न हूंद I





  • अथ बीभत्सो नामो / बीभत्स मनोविज्ञान
अनभिमतदर्शनेन च गंधरसस्पर्शशब्ददौषऐश्च I
उद्वेगनैश्च बहुभिर्बीभत्सरस: समुद्भवति II
(6,49)
अप्रिय, घिणाण वळ पदार्थ देखिक, अप्रिय –गंध, रस , स्पर्श अर अप्रिय शब्द, भौत सा दोषवळ उद्वेगजनक अनुभवों से बीभत्स रस उत्पन्न हूंद II




  • अथ अद्भुतो नाम , अद्भुत रस मनोविज्ञान
अथ अद्भुतो नाम
यत्त्वतिशयार्थयुक्तं वाक्यं शिल्पं च कर्म रूपं वा I
तत्सर्वमद्भुतरसे विभाव रूपं हि विज्ञेयम् II 6, 75 II
अतिशयोक्तपूर्ण वाणी , वाक्य , शिल्प /ब्यूंत अर क्रिया जांसे सभी रूपों आभास हो त वो अद्भुत रस हूंद I




  • करुण रसो अभिनय: / करुण रस स्वांग(अभिनय)
सस्वनरुदतैर्मोहागमैश्च परिदेवितैर्विलपितैश्च ।
अभिनय: करुणरसो देहायसाभिघातैश्च ।।
(6 ,63 )

करुण रसम स्वगत रूण , मूर्छना, भाग्य तैं कुसण, अन्तरविलाप, , सरैल तैं पटकण , पिटण, भ्यूं पोड़न आदि से स्वांग (अभिनय ) करे जांद



  • श्रृंगार रस अभिनय
नयनवदनप्रसादै: स्मितमधुरवचोधृतिप्रमोदैश्च I
मुधुरैश्चांगविहारैस्तस्यभिनय: प्रयोक्तव्य: II (6,48)
श्रृंगार रसौ अभिनय आंख्युंम अर मुखम प्रसन्नता से , स्मित मधुर बचन बोलिक, संतोष अर प्रमोद से अर शरीरांगों लालित्यपूर्ण मधुर रूप से चलाण/संचालन द्वारा करण चयेंद I






  • अथ रौद्रौ अभिनय
नानाप्रहारणमोक्षै: शिर:कबंधभुजकर्तनैश्चैव।
एभिश्चार्थविशेषैरस्याभिनय: प्रयुक्तव्य: । ।
रौद्र रसौ अभिनय (स्वांग) बनि बनि प्रकारौ को प्रयोग करण , मुंड , गौळ , पुटुक , बौंळ आदि कटण द्वारा सम्पन हूंद।






  • हास्य रस अभिनय
विकृताचारैर्वाक्यैरङ्गविकारैश्च।
हासयति जनं यस्मात्तस्माज्ज्ञेयो रासो हास्य: II
हास्यौ अभिनय (पाठ खिलण ) असंगत चेष्टाओं , उल्टी सीधी छ्वीं करिक अर उटपटांग लारा पैरिक जान क्रियाओं से करे जांद I






  • वीर रसो अभिनय:वीर रसौ अभिनय
स्तिथिधैर्यवीर्यगवैंर्रूत्साहपराक्रमप्रभावैश्व।
वाक्यैश्वाक्षेपकृतैवीर्रस: सम्यगभिनेय।।
।6. 68।

वीर रसौ अभिनय स्थिरता , धैर्य, ऊर्जापूर्ण, गर्व , उछाह, पराक्रम , प्रभावपूर्ण वाणी अर साहसिक कार्जों द्वारा करण चयेंद।



  • भयानक रस अभिनय /भयानक रसौ पाठ खिलण
करचरणवेपथुस्तम्भगात्रहृदयप्रकम्पेन।
शुष्कौष्ठतालुकंठैर्भयाको नित्यंभिनेय: ।। (6. 72)
गढ़वाली अनुवाद
भयानक रस को पाठ खिलणो (अभिनय करण ) कुण हथ -खुट कमण , सरैल कु स्तम्भित ह्वे जाण जिकुड़ीक कमण , ऊंठ -तळुक अर कंठक सुकण क करतबों से करे जांद।
उदाहरण
गढवाली लोक नाटकों / में भय रस
वायु मसाण को भयो वर्ण मसाण
वर्ण मसाण को भयो बहतरी मसाण
बहतरी मसाण को भयो चौडिया मसाण
*** ****** ***** ******* **** **** *****
वीर मसाण , अधो मसाण मन्त्र दानौ मसाण
तन्त्र दानौ मसाण
बलुआ मसाण , कलुआ मसाण , तालू मसाण
************* ********** *************************
डैणी जोगणी को लेषवार , नाटक चेटको फेरवार
मण भर खेँतड़ी , मण भर गुदड़ी , लुव्वाकी टोपी बज्र की खंता
(रौख्वाळी गीत)



  • बीभत्स रस अभिनय/बीभत्स रसौ पाठ खिलण
मुखनेत्रविकूणनया नासाप्रच्छादनावनमितास्यै :
अव्यक्तपादपतनैर्बीभत्स: सम्यगभिनेय: I I
(6 . 74 )
बीभत्स रसौ पाठ खिलणौ कुण मुक अर आंख तै संकुचित करण, नाक ढकण से , मुंड झुकाण से , अर उल्ट -सुल्ट हिटण से अभिनय हूंद।
उदाहरण -
मार्ग गुंवड़ को छौ। मार्ग पर जांद वैकि दृष्टि गू पर पोड़ अर वैक पुटुक तौळ अर उन्द ह्वे गे अर वु उखम इ उकै करण मिसे गे , कुछ सुंगर ऊना ऐन अर बड़ा रौंस से गोओ अर उल्टी चटण मिसे गेन। वैकि उल्टी बंद ह्वेइ छे कि तबि एक खाज वळ कुकुर ऊना आयी जैक सरैल पर लुतुक भैर अयुं छौ अर खून व पीप बगणु छौ। घीण क मारन वाई तै दुबर उल्टी आण मिसे गे।
(भीष्म कुकरेती क ' अजाण दुनिया म ' कथा से ( गढ़ ऐना म प्रकाशित



  • अद्भुत रस अभिनय : अद्भुत (खौंळेणो पाठ खिलण )
स्पर्शग्रहोल्लुकसनैर्हाहाकारैश्च सादुवादैश्च I
वेपथुगद्गदवचनै: स्वदेाद्यरभिनयस्तस्य I । 6 . 76 ।
अद्भुत रसौ पाठ खिलण कुण कै वस्तु तै देखिक खौंळेण से , अचाणचक हाहाकार करण से , कै तै साधुवाद दीण से या बड़ैं करण से , सरैल म कम्पन पैदा करण से , गौळ गदगद करण से , या स्वेद आण से दिखाए जांद।




  • स्थायी भाव 
रतिहसिसश्च शोकश्च क्रोधोत्साहौ भयं तथा ।
जुगुप्सा विस्मयश्चेति स्थायी भावा: प्रकीर्तिता: ।
अध्याय 6 , 17 ।
स्थायी भाव आठ छन - रति, हास्य शोक , क्रोध , उत्साह , भय अर विस्मय।
भरत नाट्य शास्त्र अनुवाद , व्याख्या सर्वाधिकार @ भीष्म कुकरेती मुम्बई
भरत नाट्य शास्त्रौ शेष भाग अग्वाड़ी अध्यायों मा


  • रति भाव व अभिनय / रति भाव का पाठ कनै खिलण
तामभिनयेत्स्मितवदनमधुरकथनभ्रूक्षेपकटाक्षदिभिरनुभावै:
(7 .8 को परिवर्ती भाग )
रति पाठ खिलणोकुण मुख पर मिठास , मुस्कान, कोमल भंगिमा , मिठ बोल
, भृकुटि विक्षेप / धनुष चढ़ाण जन प्रतिक्रिया , कटाक्ष आदि क्रियाओं क अनुसरण करण पड़द।
एक गढ़वाली लोकनाटक स्त्रियों द्वारा गीतुं (चैत ) म खिले गे छौ। नाटक एक सत्य घटना पर आधारित छौ अर तब लक गीत बि प्रचलित ह्वे छौ।
घटना छे बल एक अध्यापक का ब्यौथा स्त्री से अवैध संबंध ह्वे गे तो प्रेमालाप -
अध्यापक (प्रेमिका तै प्रसन्न करणो पर्यटन करदो ) -हे बांद ! तू आज भौति बिगड़ैलि लगणी छे।
प्रेमिका ( लज्जायुक्त , सरैल तै ट्याड़ करदी जन बेल हूंद ) - ह ह ! किलै झूठ .. अं .. अं ?
अध्यापक (ुतः, ुलार, ढाढ़स , प्रेम युक्त मिठ भौणम ) - सच्च ! तू तो आज औँसी रातै जून (चाँद लगणी छे।

  • हास भाव अभिनय /हौंस चित्त वृति कु पाठ खिलण
परचेष्टानुकरणाद्धास: समुपजायते ।
स्मितहासातिहसितैरभिनय: स पण्डितै
। 7 . 10 ।
हास क पाठ खिलणौ (अभिनय ) कुण हौर लोकुं कार्य क उपहासपूर्ण अनुकरण 'हास' तै जन्म दींद। यांक अतिरिक्त, अनर्थक अव्यवस्था पैदा करण ,दोष दृष्टि से छिद्रान्वेषण करण पर जु
रौंस मिल्द वी 'हास' चित्त वृति च। हौस उत्पन्न हूण से हौंस लगद /आंद।
हौंस छह प्रकार कु हूंद -
स्मित - म दंत पाटी नि दिख्यांदि , गल्वड़ थोड़ा फुल्यां, अर दृष्टि सुंदर व कटाक्ष युक्त हूंद।
हसित - मुख अर आँख चौड़ा (विकसित ) होवन , गल्वड़ पूर फुल्यां ह्वावन , अर दांतु पाती थोड़ा सा इ दिख्यांदि।
विहसित - हंसद समौ आँख अर गल्वड़ आकुंचित हूंदन अर गिच्च ब्रिटेन मिठ ध्वनि व मुख पर लालिमा हूंद ।
उपहासित - म नाक फुलिं दिखेंद। दरसिहति ट्याड़ि , अर कंधा व आँख आकुंचित /घुमावदार हूंदन।
अपहसित - हंसद हंसद आंख्युं म पाणि आणु रौंद अर मुंड व कंदा कमणा (कम्पन ) रौंदन ) I जब अधिक देर तक हो तो पुचक पर हाथ चल जांद आदि

  • शोक भाव अभिनय / शोक भावक पाठ खिलण
सस्वनरुदिताक्रांदितदीर्घानि: 
श्वसितजडतोन्मादमोहमरणादिभिरनुभावैरभिनय: 
प्रयोक्तव्य: I (७। १० को परवर्ती कारिका )
शोक भावक पाठ खिलणो कुण शनैः शनैः रूण , कबि कबि किराण,कबि लम्बी सांस लीण /उसासी लीण , कबि जम जाण /जड़ ह्वे जाण , कबि बौळेण , कबि मोह दिखाण, कबि मोरण जन करतबों अनुकरण आदि जन अभिनय करे जांद।
गढ़वाली हंत्या जागर शोक भाव को सबसे उत्तरम उदाहरण च। इखम एक हन्त्या जागर व एक लोक गीत दिए गेन जो शोक भाव दर्शांदन -
हंत्या जागर का प्रथम भाग
मृत पितर अथवा पुरखों की लालसा को गढवाली-कुमाउनी में हंत्या कहते हैं
ओ ध्यान जागि जा
ओ ध्यान जागि जा
गाड का बग्यां को ध्यान जागि जा
ओ ध्यान जागि जा
भेळ का लमड्याञ को ध्यान जागि जा
ओ ध्यान जागि जा
डाळ का लमड्याञ को ध्यान जागि जा
फांस खैकि मरयाँ को ध्यान जगी जा
ओ ध्यान जागि जा
जंगळ मा बागक खयां को ध्यान जागि जा
ओ ध्यान जागि जा
घात प्रतिघात का मोर्याँ को ध्यान जाग
आतुर्दी मा मरयाँ को ध्यान जागि जा
भूत देवता परमेश्वर महाराज
हरि का हरिद्वार जाग -- धौळी देवप्रयाग जाग
जै रण का मोर्याँ तै रण का ध्यान जाग ..
आकस्मिक अपघात मृत्यु का रवांल्टी करुण-दारुण लोक गीत

(सन्दर्भ: महावीर रंवाल्टा, 2011, उत्तराखंड में रंवाइ क्षेत्र के लोक साहित्य की मौखिक परंपरा, उदगाता, पृष्ठ 48- 56 )
( इंटरनेट प्रस्तुति एवं अतिरिक्त व्याखा - भीष्म कुकरेती )

फूली जाली कवाईं, फूली जाली कवाईं
न आई बेटी समुन्दरा न आई भंडारी ज्वाईं।
फूली जाली कवाईं, फूली जाली कवाईं
न आई बेटी समुन्दर न आई भंडारी ज्वाईं।
ले लुवा गाड़ी कूटी, ले लुवा गाड़ी कूटी,
तेरी बेटी समुन्दरा सांदरा पुलौ दी छूटी।।
ले लुवा गाड़ी कूटी, ले लुवा गाड़ी कूटी,
तेरी बेटी समुन्दरा सांदरा पुलौ दी छूटी।।


  • क्रोध भाव अभिनय: रोष भावो पाठ खिलण व उदाहरण
अस्यविकृष्टनासापुटोद्वृत्तनयनसंदाष्टोष्ठपुटगंडस्फुरणादिभिरनुभावैरभिनय: प्रयोक्तव्य: I 7. 14 की परवर्ती कारिका )
अनुवाद/व्याख्या -
क्रोध (रोष, रुस्याणौ ) कs पाठ खिAngry लणौ कुण फुल्यां नकध्वड़ (नथुने ), पसरीं आँख (फैली आँख), गोळ -गोळ आंख करण से , हिल्दा ऊंठ या कनपट्टी क हिलण -डुलण का करतब/क्रिया करे जांदन। मख विकृत करण, ऊंठ कटण , लात -घूंसा चलाण, दांत किटण से बि रोष भावौ पाठ खिले जांद।
( कैक द्वारा अपमानित हूण पर , इच्छा /गाणी -स्याणी विरुद्ध फल प्राप्ति , बोल -चाल म कै से हार से , प्रतिपक्ष से हरण आदि से रोष भाव उतपन्न हूंद )
भीष्म कुकरेती द्वारा गढवाली लोक नाटकों का काव्य शास्त्रीय विश्लेष्ण मे दिया गया एक उदाहरण
हम जब पढ़ते थे तो हमने एक बार गोर चारागाह में एक नाटक खेला था। इसमें हमने फेल होने पर किस प्रकार हमारे संरक्षक हमारे साथ क्रोध कर
वर्ताव करेंगे का नाटक खेला था।
एक संरक्षक (ताली पीट पीटकर )- ये हराम का बच्चा ! ये साल बी फेलह्वे ग्ये हैं ? कन बत्वार आयि तेरी …
दूसरा संरक्षक (अपने लडके के बाल झिंझोड़ते हुए, दांत किटद ) -हूँ ! हूँ ! बाळु पर तरोज तेल इन लगांदु छौ जन बुल्यां कै सौकारौ नौनु ह्वेलु। अर पास हूंद दैं … पास हूंद दैं ब्वे मरी गे छे तेरी ? हैं ! आज जिंदु हि खड्यारण मीन तू !
तीसरा संरक्षक (अलग अलग ढंग से अपने फेल हुए पुत्र को लात मारते हुए)- हूँ ! जब मि बुल्दु छौ बल बुबा किताब पौढ़ी लेदि त तू चट कबि गुच्छीखिलणो भाजि जांदि छे , त कबि नाचणों भाग जांदि छौ अर कबि रामलीला दिखणो तेरी टुटकी लग जांदि छे। अर पास हूंद दैं … तेरी डंडलि सजे
गे हैं ?

भरत नाट्य शास्त्रौ

भरत नाट्य शास्त्र अनुवाद , 
व्याख्या सर्वाधिकार
 @ भीष्म कुकरेती मुम्बई
भरत नाट्य शास्त्रौ शेष भाग अग्वाड़ी अध्यायों मा



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